हिंदी भाषा के अध्ययन में उसकी संरचना के प्रत्येक आयाम को समझना आवश्यक है। तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी, संकर आदि शब्द प्रकार स्पष्ट करते हैं कि जननी भाषा संस्कृत की शब्दावली के अतिरिक्त वर्तमान हिंदी भाषा में उपलब्ध शब्द एवं भाषा का स्वरूप यह स्पष्ट करता है कि भाषा किस तरह शब्दों के लालन-पालन, परिवर्तन एवं नवनिर्माण की प्रक्रिया को वहन करती है, शब्दों की यात्रा से भाषा की विकास यात्रा की कहानी सुनी एवं समझी जा सकती है। हिंदी भाषा के स्वरूप के लिए संधि, समास, संक्षिप्तियों जैसे अध्याय हिंदी भाषा की नींव को मज़बूत करने के लिए आवश्यक हैं वहीं स्थानीयता के आधार पर या अन्यान्य कारणों से होने वाली भाषागत त्रुटियों को समझकर उसका संशोधन, सुधार या परिष्कार भाषा के प्रति होने वाले न्याय का आवश्यक पक्ष है। छोटी-छोटी कविताओं के भावबोध, रोचक व्यंग्य, शब्द चित्र आदि के अध्ययन, सदैव भाषागत कौशल को विकसित करते हैं। हिंदी भाषा के वर्तमान स्वरूप को समझने के लिए आवश्यक है कि उसकी विविध प्रयोजनीयता के अनुकूल उसकी धड़कनें चित्रपट, रंगमंच, साक्षात्कार, भारतीय संगीत में सुनी जायें।
वर्तमान प्रौद्योगिकी के युग में लिपि को लेकर उठ रहे प्रश्नों के साथ ही देवनागरी लिपि की विकास यात्रा एवं इतिहास को जानना आवश्यक है। देवनागरी लिपि के स्वरूप का अध्ययन एवं उसकी वैज्ञानिकता स्वमेव ही यह सिद्ध करती है कि उसमें परिवर्तन तो हो सकता है किंतु उसका बना रहना क्यों आवश्यक है? समस्त तथ्य इस विषय के अध्ययन द्वारा साहित्य एवं भाषा संबंधी समझ को विकसित करने में सहायक होंगे।